अब कृषि मंत्री हैं तो कृषि की बात क्यों न करते! वो बात भी की। उन्होंने कहा कि मनरेगा को कृषि कार्य से जोड़ना चाहिए। असल में उन्हें कहना चाहिए था कि कृषि को बारिश से जोडना चाहिए। बारिश को आसमान से। आसमान को वायुमंडल से और वायुमंडल को पर्यावरण से, फिर पर्यावरण को जंगलों से और जंगलों को जनता से। हो गया चक्र पूरा। इन सब को जोडते-जोडते पांच साल बीत जाएंगे और तब तक दूसरे कृषि मंत्री आ जाएंगे तो वे कह देंगे हमने तो सबको आपस में जोड दिया।
एक और जरूरी बात कही मंत्री साहब ने। उन्होंने कहा इस बार किसानों की सलाह पर ही कृषि बजट तैयार किया जाएगा। चलिए कम से कम उन्होंने ये तो माना कि अभी तक किसी और की सलाह पर कृषि बजट तैयार होता था। किसकी- टाटा, अंबानी, मित्तल की। अरे नहीं ये सब सलाह नहीं न देते, ये तो सीधे जरूरत बता देते हैं, बाद मेंमंत्री जी उन्हें पूरा कर देते हैं। बजट का पैसा तो यही देते हैं, तो इनकी बात मानना भी तोजरूरी है। किसान कोई पैसा देता है क्या! वह तो बस पैसे की ओर टकटकी लगाये रहताहै। तो किसकी बात सुनें जो पैसा देता है उसकी या जो लेता है उसकी! आप ही बताइये। पैसा लेने वाले की सुनना चाहते हैं मंत्री जी। किसानों की। वाह भाई सुराज आ गया। अबतो सब कुछ बढ़िया हो जाएगा। जब तक नहीं होता तब तक पेट पर गीला कपडा बांध केसो जाइये। भूख का क्या है, हर रोज लगती है। इतनी अच्छी बातें रोज सुनने को मिलती हैं क्या। क्या कहा- बच्चा रो रहा है। ये बच्चा सब भी जनता की तरह ही होता है, बहुत रोता है। एक काम पूरा न करो तो रोने लगता है। चुप करो जी। अभी मंत्री जी भाषण के बाद भोज खा रहे हैं!!